बांदा : न्यायिक इतिहास में पहली बार 13 को उम्रकैद

न्यायिक इतिहास में पहली बार 13 को उम्रकैद
बांदा। एसटीएफ कमांडो की सामूहिक हत्या में अदालत का फैसला ऐतिहासिक रहा। शायद यह पहली बार है जब जनपद में किसी केस में एक साथ 13 अभियुक्तों को दोष सिद्ध पाते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। जानकारों का कहना है कि यहां किसी भी आपराधिक मुकदमे में अधिकतम छह लोगों को ही आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। सजा पाने वालों में शामिल देवशरण पटेल दस्यु सरगना ठोकिया का सगा मामा बताया गया है।
एसटीएफ कमांडो की सामूहिक हत्या केस की करीब 14 वर्ष 11 माह तक पांच जजों ने सुनवाई की। इनमें क्रमश: हरिनाथ पांडेय, नरेंद्र झा, श्रीकृष्ण यादव, हरेंद्र और अंतिम जज नुपुर शामिल हैं। इस केस में अभियोजन की ओर से पैरवी करते रहे पूर्व विशेष लोक अभियोजक और वर्तमान में एडीजीसी प्रमोद कुमार द्विवेदी ने बताया कि इस घटना की तीन अलग-अलग हुई एफआईआर में पुलिस के तीन विवेचक शामिल रहे।
अभियोजन ने मांगी थी सभी को सजा-ए-मौत
ठोकिया और उसके गिरोह ने जिन छह एसटीएफ कमांडो की सामूहिक हत्या की थी वह सब युवा उम्र के थे। कुछ अविवाहित भी थे। अभियोजन पक्ष ने दोष सिद्ध इन हत्यारों को अदालत से सजा-ए-मौत की मांग की थी। लेकिन अदालत ने उम्र कैद की ही सजा सुनाई।
151 पेज के अपने आदेश में विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावित क्षेत्र अधिनियम)/अपर सत्र न्यायाधीश नुपुर ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले (राकेश एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार) का हवाला देकर कहा कि हत्या जैसे मामले में जहां पर साक्षी के साक्ष्य और पोस्टमार्टम रिपोर्ट उपलब्ध हैं वहां आयुध (शस्त्र) की बरामदगी न होना अभियोजन दलीलों को कमजोर नहीं कर सकतीं। दोषियों के अधिवक्ताओं की दलील थी कि अभियुक्तों के पास से कोई शस्त्र बरामद नहीं हुए हैं।
सौजन्य : अमर उजाला